सितारे ज़मीन पर मूवी रिव्यू: इमोशन, इंसानियत और उम्मीद से भरी एक खास कहानी

ये फिल्म (sitaare zameen par review) सिर्फ स्पैनिश फिल्म Champions की कॉपी नहीं है, बल्कि उससे कहीं आगे जाकर एक दिल छू लेने वाली कहानी बन जाती है जो इंसानी हिम्मत और जज़्बे को सलाम करती है। इसमें बताया गया है कि मुश्किलों में भी हार नहीं माननी चाहिए। साथ ही ये फिल्म दिमागी तौर पर अलग बच्चों और लोगों को हिंदी सिनेमा में सही तरीके से दिखाने की कोशिश भी करती है। हंसी, इमोशन और अपनापन इस कहानी में इतनी खूबसूरती से मिलते हैं कि फिल्म खत्म होते-होते आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि असल में ‘अलग होना’ कोई कमी नहीं बल्कि खूबसूरती है।
सितारे ज़मीन पर (sitaare zameen par review)’ में आमिर की अब तक की सबसे सच्ची कहानी
तीन साल बाद आमिर खान फिर बड़े पर्दे पर लौटे हैं — फिल्म सितारे ज़मीन पर (sitaare zameen par review) के साथ। लेकिन इस बार वो सुपरहीरो या आम बॉलीवुड हीरो नहीं हैं। वो बने हैं गुलशन, जो पहले बास्केटबॉल कोच थे लेकिन उनके गुस्से और घमंड की वजह से उनकी जिंदगी उलझ जाती है। कोर्ट उन्हें सज़ा देता है कि वो 10 ऐसे बच्चों को बास्केटबॉल सिखाएं, जो दिमागी तौर पर बाकी लोगों से थोड़े अलग हैं।
शुरू में गुलशन को ये मज़ाक लगता है। लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदलने लगती हैं। जो कहानी शुरू में एक सिंपल स्पोर्ट्स फिल्म जैसी लगती है, वो बाद में दिल को छू लेने वाली, इमोशनल और भारतीय दिल से जुड़ी कहानी बन जाती है।
इस फिल्म को खास बनाते हैं वो 10 असली बच्चे, जो एक्टिंग के प्रोफेशनल नहीं हैं। ये वो बच्चे हैं जो असल जिंदगी में भी अलग हैं और पहली बार कैमरे के सामने आए हैं। कोई लड़की है जो बहुत बड़े सपने देखती है, कोई लड़का है जो पानी से डरता है और किसी से छूने नहीं देता।
ये बच्चे अपनी सच्ची भावनाओं से फिल्म में जान डाल देते हैं। कहीं परफेक्ट नहीं है, लेकिन इसी में इसकी खूबसूरती है।
सितारे ज़मीन पर सिर्फ खेल या जीतने की कहानी नहीं है। ये सीखने, बदलने और एक-दूसरे को वैसे ही अपनाने की कहानी है जैसे वो हैं। ये दिखाती है कि हर कोई चमकने का हकदार है — चाहे वो कितना भी अलग क्यों ना हो। (sitaare zameen par review)

कोई फालतू ड्रामा नहीं, बस असली जज़्बात (sitaare zameen par review)
सितारे ज़मीन पर (sitaare zameen par review) की सबसे बड़ी खूबी यही है कि ये बच्चों की हालत को दिखाने के लिए फालतू का मेलोड्रामा नहीं करती। आजकल बहुत सी फिल्में सिर्फ लोगों की सहानुभूति पाने के लिए दुखी सीन खींचकर दिखाती हैं, लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है। इसमें ना दुखभरे बैकग्राउंड म्यूजिक का ओवरडोज है और ना ही बेवजह आंसू निकलवाने के लिए लंबे इमोशनल डायलॉग्स हैं।
डायरेक्टर आर. एस. प्रसन्ना और राइटर दिव्य निधि शर्मा ने कहानी को बहुत सच्चाई और इमानदारी से दिखाया है। इसमें बच्चों की मस्ती, कोच गुलशन का गुस्सा, उनकी छोटी-छोटी जीतें और उन पलों में छुपा प्यार सबकुछ इतने रियल तरीके से आता है कि दर्शक खुद को उनसे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
फिल्म में कहीं भी आपको ये नहीं लगेगा कि जबरदस्ती कोई मैसेज घोंपा जा रहा है। इसमें हर सीन एकदम नैचुरल है — जैसे जिंदगी में होता है। छोटी-छोटी बातें जैसे दोस्ती में तकरार, कोच और बच्चों के बीच भरोसा बनना, एक दूसरे को अपनाना — ये सब असली जिंदगी से निकला लगता है।
इस फिल्म का असली संदेश ये है कि अलग होना कोई कमी या बीमारी नहीं है। हम सभी इंसान हैं और हर किसी में कुछ खासियत होती है। ये फिल्म हमें यही सिखाती है कि हम किसी को उसकी हालत या लेबल से नहीं, बल्कि उसके दिल से पहचानें।
असल में सितारे ज़मीन पर (sitaare zameen par review) सिर्फ बच्चों की कहानी नहीं, बल्कि हम सबको थोड़ा और इंसान बनने की सीख देती है — और यही इसे इतना खास बनाता है।
कौन देख सकता है ये फिल्म — और क्यों जरूरी है (sitaare zameen par review)
सितारे ज़मीन पर (sitaare zameen par review) हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी। परिवार के साथ देखने के लिए परफेक्ट फिल्म है। इससे परिवार में आपसी समझ और प्यार के बारे में अच्छी बातें हो सकती हैं।
टीचर्स और स्कूल वाले भी इस फिल्म से सीख सकते हैं — जैसे आमिर की पहली फिल्म तारे ज़मीन पर ने दिखाया था कि स्पेशल बच्चों को सपोर्ट करना कितना जरूरी है।
अगर आपको स्पोर्ट्स या टीम वर्क वाली फिल्में पसंद हैं — जैसे चक दे इंडिया या दंगल — तो ये फिल्म भी आपके दिल को छू जाएगी।
सोशल वर्कर या थेरेपिस्ट भी इससे सीख सकते हैं कि अलग बच्चों को कैसे समझा जाए और कैसे उन्हें समाज में इज़्ज़त मिले।
आमिर खान के फैन तो खुश हो ही जाएंगे क्योंकि तीन साल बाद उन्होंने फिर से दिल से जुड़ी कहानी लेकर वापसी की है।
और अगर आप कभी भी अपने आपको दूसरों से अलग समझते हैं — तो ये फिल्म आपको दिलासा देगी कि हर कोई प्यार और मौका पाने लायक है। (sitaare zameen par review)
बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट: धीरे शुरू लेकिन पॉजिटिव खबरों से रफ्तार पकड़ी (sitaare zameen par review)
आमिर खान की ये नई फिल्म सितारे ज़मीन पर 20 जून 2025 को रिलीज़ हुई। पहले दिन टिकट काउंटर पर ज्यादा भीड़ नहीं थी — पहले दिन लगभग ₹3.9 करोड़ की कमाई हुई। रिलीज़ से पहले 90,000 टिकट बिके थे।
सुबह और दोपहर में थिएटर खाली थे लेकिन शाम होते-होते लोगों ने टिकट बुक करने शुरू कर दिए। लोग फिल्म की कहानी और बच्चों की एक्टिंग की तारीफ कर रहे हैं।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर इसी तरह माउथ-टू-माउथ पब्लिसिटी बढ़ती रही तो पहले तीन दिन में ₹11 से ₹15 करोड़ तक की कमाई हो सकती है।
कुल मिलाकर फिल्म ने रिकॉर्ड तो नहीं तोड़े लेकिन धीरे-धीरे लोगों के दिल जीत रही है — जैसे इसके अंदर के बच्चे कोर्ट पर कर दिखाते हैं।
ये फिल्म हमें जिंदगी, प्यार और आगे बढ़ने की सीख देती है (sitaare zameen par review)
सितारे ज़मीन पर (sitaare zameen par review)सिर्फ अच्छी लगने वाली कहानी नहीं है, ये जिंदगी के कई सबक भी देती है। ये सिखाती है कि दिमागी या शारीरिक तौर पर अलग लोग दया के नहीं, इज़्ज़त के हकदार होते हैं।
आमिर का किरदार भी हमें दिखाता है कि इंसान चाहे कितना भी घमंडी या गुस्सैल क्यों न हो — प्यार और भरोसे से बदल सकता है।
यहां बास्केटबॉल जीतने से ज्यादा दोस्ती, भरोसा और आत्मसम्मान पर फोकस है।
छोटे-छोटे प्यार और भरोसे के काम किसी की पूरी दुनिया बदल सकते हैं।
सबसे जरूरी बात — ये समाज के पुराने ‘नॉर्मल’ के मतलब को तोड़ती है और बताती है कि अलग सोचना या करना कोई ग़लत बात नहीं, बस एक अलग तरीका है जीने का।
प्रेरणा लेने के लिए तैयार हैं? (sitaare zameen par review)
सितारे ज़मीन पर सिर्फ फिल्म नहीं — एक ऐसा अनुभव है जो सिखाता है कि दुनिया को प्यार और समझ से देखना चाहिए। तो परिवार, दोस्तों या अपनी टीम के साथ थिएटर जाइए और ये दिल को छू लेने वाली कहानी देखिए।
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